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Overview of “The History of Solan District”
वर्तमान सोलन जिले में, बाघल, बघाट, कुनिहार, मंगल, बेजा और महलोग की पूर्व रियासतें शामिल हैं। समग्र पंजाब राज्य के भाषाई पुनर्गठन के बाद, हिंदूर (नालागढ़), क्योंथल और कोटी के कुछ हिस्सों और पहाड़ी क्षेत्रों को 1 नवंबर, 1966 को हिमाचल प्रदेश में जोड़ा गया। इतिहास के अनुसार, इन रियासतों के अधिकांश क्षेत्र गोरखाओं के प्रभाव में थे। 1815 में अंग्रेजों द्वारा गोरखाओं की हार के बाद, इन राज्यों को मुक्त कर दिया गया और उनके संबंधित राजाओं को वापस दे दिया गया।

सोलन जिले के बारे में अधिक जानने के लिए निम्नलिखित रियासतों/Princely States के इतिहास को समझना और अध्ययन करना आवश्यक है:
Main Princely States :
Baghat State
“बघाट” शिमला हिल राज्यों में से एक था। बघाट शिमला के दक्षिण और पश्चिम में 20 मील की दूरी पर स्थित है और सोलन से कसौली तक फैला हुआ था। बघाट का अर्थ है “बहु घाट” अर्थात बहुत से दर्रे/घाट। कहा जाता है कि बघाट रियासत की स्थापना बसंत पाल (हरिचंद पाल) जो धारना गिरी (दक्षिण भारत) के एक पंवार राजपूत थे उन्होंने की। 1839 ई. में राणा महेंद्र की निसंतान मृत्यु हो गई जिसके पश्चात रियासत की कमांड ब्रिटिश सरकार के नियंत्रण में आ गई। इसके पश्चात राणा विजय सिंह रियासत के शासक बने। 1849 ई. में राणा विजय सिंह की बिना संतान के मृत्यु हो गई, इस घटना के बाद लॉर्ड डलहौजी की लेप्स नीति के तहत बघाट रियासत ब्रिटिश सरकार के अधीन हो गया।
राणा उम्मेद सिंह को 1862 ई. में (13 वर्ष बाद) रियासत पे हकुमत प्राप्त हुई जब वह मृत्यु के निकट थे। राणा उम्मेद सिंह के बाद राणा दलीप सिंह 1862 से 1911 ई. तक बघाट रियासत के शासक रहे। उन्होंने ही बघाट रियासत की राजधानी बोछ से सोलन बदली।
राणा दिलीप सिंह की मृत्यु (1911 ई.) के बाद राणा दुर्गा सिंह (1911-1948) बघाट रियासत के अंतिम शासक थे। सोलन (बघाट) के दरबार हाल में 26 जनवरी, 1948 ई. को ‘हिमाचल प्रदेश’ का नामकरण किया गया जिसकी अध्यक्षता राजा दुर्गा सिंह ने की थी।
Baghal State (Arki)
बाघल रियासत के उत्तर में मांगल, पूर्व में धामी और कुनिहार, पश्चिम में हण्डूर (नालागढ़) तथा दक्षिण में अम्बाला स्थित था। बाघल रियासत की स्थापना उज्जैन के पवार राजपूत अजयदेव ने की थी। बाघल रियासत गम्भर नदी के पास स्थित था।
सैरी, ढूंडन और डारला रियासत की राजधानी रही थीं। 1643 ई. में राणा सभाचंद ने अर्की को बाघल रियासत की राजधानी बनाया। राणा सभाचंद को बाघल रियासत का पहला शासक माना जाता है। अर्की शहर की स्थापना राणा सभाचंद ने ही की थी।
Kunihar State
जम्मू (अखनूर) से आए अभोज देव ने 1154 ई. में कुनिहार रियासत की स्थापना की। कुनिहार रियासत की राजधानी हाटकोटी थी। गोरखा युद्ध के समय मगन देव रियासत के शासक थे। गोरखों के जाने के बाद ठाकुर मुंगरी दास रियासत के शासक बने। राव हरदेव सिंह कुनिहार के अंतिम शासक थे।
Kuthar State
कुठाड़ रियासत की स्थापना किश्तवार (कश्मीर) से आये सूरतचंद ने की थी। 1815 ई. से पूर्व कुठाड़ रियासत हण्डुर और बिलासपुर की जागीर थी। गोरखा आक्रमण के समय कुठाड़ रियासत क्योंथल की जागीर थी। उस समय कुठाड़ का शासक गोपाल चंद था जिसने गोरखा आक्रमण के समय मनीमाजरा में शरण ली। ब्रिटिश सरकार ने 1815 ई. में कुठाड़ को गोरखा नियंत्रण से मुक्त करवाकर राणा भूप सिंह को सनद (1815 ई में) प्रदान की। क्योंथल का हिस्सा रहे सबाधू को बाद में कुठाड़ रियासत में मिला दिया गया। सबाधू किले का निर्माण गोरखों ने करवाया जिसमें 1816 ई. में ब्रिटिश सरकार ने पहली सैन्य चौकी स्थापित की।
Mehlog State
महलोग रियासत की स्थापना अयोध्या से आये वीरचंद ने की थी। वीरचंद शुरू में पट्टा गाँव में रहने लगे और उसे अपनी राजधानी बनाया। उत्तम चंद ने सिरमौर के राजा से हारने के बाद महलोग रियासत की राजधानी 1612 ई. में ‘कोट धारसी’ में स्थानांतरित की। महलोग क्योंथल रियासत की जागीर थी।
गोरखा आक्रमण- महलोग रियासत 1803 ई. से 1815 ई. तक गोरखों के नियंत्रण में रही। इस दौरान महलोग के शासक ठाकुर संसार चंद ने हण्डुर के राजा रामशरण के यहाँ शरण ली। ब्रिटिश सरकार ने 1815 ई. में महलोग को गोरखा आक्रान्ताओं से स्वतंत्रता दिलाई और स्वतंत्र सनद (4 सि. 1815 ई.) प्रदान की।
ब्रिटिश नियंत्रण- ठाकुर संसार चंद की 1849 ई. में मृत्यु के बाद दलीप चंद (1849-1880) गद्दी पर बैठे। रघुनाथ चंद को ब्रिटिश सरकार ने ‘राणा’ का खिताब प्रदान किया। रघुनाथ चंद के पुत्र दुर्गा सिंह को (1902 ई.) में ब्रिटिश सरकार ने ‘ठाकुर’ का खिताब प्रदान किया। महलोग रियासत के अंतिम शासक ‘ठाकुर नरेन्द्र चंद’ थे।
Beja State
बेजा रियासत स्थापना दिल्ली के तँवर राजा ढोलचंद ने की जबकि दूसरी जनश्रुति के अनुसार बेजा रियासत की स्थापना डोलचंद के 43वें वंशज गर्वचंद ने की। बेजा रियासत बिलासपुर (कहलूर) के अधीन थी। 1790 ई. में हण्डुर द्वारा कहलूर को हराने के बाद बेजा रियासत स्वतंत्र हो गई।
गोरखा आक्रमण- गोरखा आक्रमण के समय मानचंद बेजा रियासत के मुखिया थे। 1815 ई. में बेजा से गोरखा नियंत्रण हटने के बाद ठाकुर मानचंद को शासन सौंपा गया। उन्हें अंग्रेजों ने “ठाकुर” का खिताब दिया। लक्ष्मीचंद बेजा रियासत के अंतिम शासक थे। बेजा को सोलन तहसील में 15 अप्रैल, 1948 ई. को सम्मिलित किया गया।
Mangal State
मारवाड़ (राजस्थान) से आये अत्री राजपूत ने मांगल रियासत की स्थापना की थी। मांगल बिलासपुर रियासत की जागीर थी। मांगल रियासत का नाम मंगल सिंह (1240 ई.) के नाम पर पड़ा।
ब्रिटिश नियंत्रण- 1815 ई. में गोरखा नियंत्रण से मुक्ति के बाद ब्रिटिश सरकार ने ‘राणा बहादुर सिंह’ को स्वतंत्र सनद प्रदान की। राणा शिव सिंह मांगल के अंतिम शासक थे। मांगल रियासत को 15 अप्रैल, 1948 ई. को अर्की तहसील में सम्मिलित किया गया।
Hindur State (Nalagarh)
स्थापना- हण्डुर रियासत की स्थापना 1100 ई. के आसपास अजय चंद ने की थी जो कहलूर के राजा कहालचंद के बड़े बेटे थे। हण्डुर रियासत कहलूर रियासत की प्रशाखा थी।
तैमूर आक्रमण- 1398 ई. में तैमूर लंग ने भारत पर आक्रमण किया। उस समय हण्डुर रियासत का राजा आलमचंद (1356-1406) था। आलमचंद ने तैमूर लंग की मदद की थी जिसके बदले तैमूर लंग ने उसके राज्य को हानि नहीं पहुँचाई।
विक्रमचंद (1421-1435 ई.) ने नालागढ़ शहर की स्थापना की। विक्रमचंद ने नालागढ़ को हण्डूर रियासत की राजधानी बनाया। रामचंद (1522-68 ई.) ने ‘रामगढ़’ का किला बनाया। रामचंद ने रामशहर को अपनी ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाया। राजा अजमेर चंद (1712-41 ई.) ने अजमेर गढ़ का किला बनवाया।
राजा रामशरण (1788-1848 ई.) ने संसार चंद का साथ दिया था। उन्होंने 1790 ई. में कहलूर रियासत को हराकर फतेहपुर, रतनपुर और बहादुरपुर किले छीन लिए थे। गोरखा आक्रमण के समय राजा रामशरण को 3 वर्षों तक राम शहर किले में छिपना पड़ा। 1804 ई. में गोरखों ने रामशहर पर कब्जा कर लिया। राजा रामशरण संसार चंद का घनिष्ठ मित्र था। राजा रामशरण ने प्लासी के किले (होशियारपुर) में 10 वर्षों तक शरण ली। राजा रामशरण के समय हण्डूर में पहाड़ी (काँगड़ा) चित्रकला का विकास हुआ। राजा रामशरण ने डेविड ऑक्टरलोनी के साथ मिलकर हण्डुर से 1814 ई. में गोरखा आक्रान्ताओं को निकाला। गोरखा सेनापति अमरसिंह थापा ने हण्डूर रियासत के मलौण किले में 15 मई, 1815 ई. को आत्मसमर्पण किया। राजा रामशरण की 1848 ई. में मृत्यु हो गई। राजा रामशरण के बाद राजा विजय सिंह (1848-1857) राजा बने।
अंग्रेजों ने 1857 ई. से 1860 ई. तक नालागढ़ को अपने नियंत्रण में ले रखा। 1860 ई. में अगरसिंह और 1878 ई. में ईश्वरी सिंह राजा बने। राजा सुरेन्द्र सिंह के शासनकाल में नालागढ़ को पेप्सू (पंजाब) में मिला दिया गया। नालागढ़ को 1966 ई. में हिमाचल प्रदेश में सम्मिलित किया गया जो 1972 ई. में सोलन जिले का हिस्सा बना।
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